छठ पूजा भारत के सबसे प्राचीन और पवित्र त्योहारों में से एक है, जो सूर्य देव और छठी मइया (ऊषा देवी) को समर्पित है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े हर्ष और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत कब हुई और इसके पीछे की कहानी क्या है?
आइए, जानते हैं इस आस्था, विज्ञान और परंपरा से जुड़ी गहराई।
छठ पूजा का महत्व (Importance of Chhath Puja)
छठ पूजा सूर्य देव की उपासना का पर्व है, जिसमें भक्त डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
सूर्य देव को ऊर्जा, स्वास्थ्य और जीवन का स्रोत माना गया है।
यह पूजा व्यक्ति के मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए की जाती है।
कहा जाता है कि छठ पर्व में की जाने वाली साधना इतनी पवित्र होती है कि इससे व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और परिवार में समृद्धि व सुख-शांति आती है।
छठ पूजा की कहानी (The Legend of Chhath Puja)
छठ पूजा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन मुख्य रूप से दो प्रसिद्ध कहानियाँ प्रचलित हैं —
1. राजा प्रियव्रत और उनकी संतान की कथा
प्राचीन काल में राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी रहते थे। दोनों बहुत धार्मिक थे, परंतु संतानहीन थे। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए एक यज्ञ करवाया।
यज्ञ पूर्ण होने के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत था।
राजा और रानी अत्यंत दुखी हो गए। तभी आकाश से एक तेजस्वी देवी प्रकट हुईं, जिन्होंने कहा —
“मैं षष्ठी देवी हूँ, बच्चों की रक्षा करने वाली माता। यदि तुम मेरी विधिवत पूजा करोगे, तो तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी।”
राजा प्रियव्रत ने देवी की आज्ञा अनुसार षष्ठी तिथि को पूजा की और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
तभी से इस दिन को “छठ पूजा” के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई।
2. महाभारत काल की कथा – कुंती और द्रौपदी का व्रत
महाभारत काल में भी छठ पूजा का उल्लेख मिलता है।
कहते हैं कि कुंती माता ने सूर्य देव की आराधना की थी, जिससे उन्हें कर्ण जैसा तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ।
बाद में द्रौपदी ने भी पांडवों के संकट काल में छठ व्रत रखा था।
द्रौपदी ने सूर्य देव से प्रार्थना की थी कि उनके पति संकट से बाहर आएं।
उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने पांडवों को उनका राज्य और सम्मान वापस दिलाने में मदद की।
इसलिए छठ पूजा को शक्ति, आस्था और विश्वास का पर्व भी कहा जाता है।
छठ मइया कौन हैं? (Who is Chhathi Maiya?)
छठ मइया को ऊषा देवी भी कहा जाता है, जो सूर्य देव की पत्नी हैं।
ऋग्वेद में उल्लेख है कि सूर्य की दो पत्नियाँ हैं — संझ्या (संध्या) और ऊषा (भोर की देवी)।
ऊषा ही वह देवी हैं जो नवजात शिशुओं और माताओं की रक्षा करती हैं।
लोग मानते हैं कि छठ मइया से सच्चे मन से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती।
वह अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं और परिवार में सुख-शांति का वरदान देती हैं।
छठ पूजा कैसे की जाती है? (How Chhath Puja is Celebrated)
छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला पर्व है। हर दिन का विशेष महत्व होता है —
1. नहाय-खाय (पहला दिन)
इस दिन व्रती शुद्ध जल से स्नान करते हैं और घर की सफाई करके सात्विक भोजन करते हैं।
भोजन में लौकी-भात और चना दाल प्रमुख होते हैं। यह दिन शरीर और मन की शुद्धि का प्रतीक है।
2. खरना (दूसरा दिन)
व्रती पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद गुड़ की खीर, रोटी और केला खाकर उपवास तोड़ते हैं।
इसके बाद अगले 36 घंटे तक निर्जला उपवास (बिना पानी का व्रत) रखा जाता है।
3. संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)
इस दिन व्रती नदी, तालाब या घाट पर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
संपूर्ण परिवार इस समय घाट पर एकत्र होता है, और लोकगीतों से वातावरण भक्ति में डूब जाता है।
4. उषा अर्घ्य (चौथा दिन)
अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत पूरा किया जाता है।
व्रती सूर्य देव और छठ मइया से परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की लंबी आयु और स्वास्थ्य की कामना करते हैं।
छठ पूजा के गीत और लोक संस्कृति
छठ पूजा का असली आकर्षण इसके लोकगीत और पारंपरिक भावनाएँ हैं।
घाटों पर गूंजते गीत —
“केलवा जे फरेला घवद से, ओ पिया…”
या
“उग हो सूरज देव, भइल अंधियार…”
ये गीत न सिर्फ पूजा का हिस्सा हैं, बल्कि बिहार और पूर्वी भारत की लोकसंस्कृति की आत्मा भी हैं।
छठ पूजा के वैज्ञानिक पहलू
कई वैज्ञानिक भी मानते हैं कि छठ पूजा का संबंध प्राकृतिक ऊर्जा और स्वास्थ्य से है।
सूर्य की किरणों से शरीर में विटामिन D बनता है और मानसिक शांति मिलती है।
उपवास और सूर्य स्नान से शरीर की डिटॉक्स प्रक्रिया तेज होती है।
इस तरह यह पूजा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टियों से लाभदायक है।
छठ पूजा के दौरान विशेष नियम
- पूजा के समय व्रती को पूरी तरह शुद्धता और पवित्रता बनाए रखनी होती है।
- रसोई में लहसुन-प्याज का प्रयोग वर्जित होता है।
- मिट्टी के बर्तनों में ही प्रसाद बनाया जाता है।
- किसी भी प्रकार की दिखावेबाज़ी या शोरगुल नहीं किया जाता।
यह व्रत आत्मसंयम, त्याग और अनुशासन का प्रतीक है।
छठ पूजा का सामाजिक संदेश
छठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक सामाजिक एकता और समानता का प्रतीक है।
इसमें अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, जाति-धर्म का कोई भेदभाव नहीं होता।
सभी लोग एक साथ घाट पर इकट्ठे होकर एक ही सूर्य देव की आराधना करते हैं।
यह हमें सिखाता है कि —
“प्रकृति और ईश्वर सभी के लिए समान हैं।”
निष्कर्ष: आस्था, अनुशासन और प्रकृति का संगम
छठ पूजा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरे संबंध का उत्सव है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में संयम, श्रद्धा और सच्ची भक्ति से हर मुश्किल आसान हो सकती है।
चाहे विज्ञान की दृष्टि से देखें या आध्यात्मिक नजरिए से —
छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक अद्भुत प्रतीक है, जो आस्था को विज्ञान से जोड़ता है।









