दिल्ली क्लाउड सीडिंग ट्रायल क्यों नहीं हुआ सफल? IIT कानपुर निदेशक ने बताया असली कारण

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Delhi cloud seeding

दिल्ली की हवा एक बार फिर चर्चा में है। बढ़ते प्रदूषण, धुंध और स्मॉग के बीच लोगों की उम्मीदें बंधी थीं एक प्रयोग से — क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding)। यह वह तकनीक है जिससे कृत्रिम बारिश करवाकर हवा को साफ करने की कोशिश की जाती है।
लेकिन सवाल ये है कि जब सब कुछ तैयार था, तब भी दिल्ली में क्लाउड सीडिंग ट्रायल असफल क्यों हुआ? आखिर किस वजह से यह प्रयोग काम नहीं कर सका?

इसी का जवाब दिया है IIT कानपुर के निदेशक प्रोफेसर संदीप वर्मा ने, जिन्होंने इस परियोजना की निगरानी भी की थी। चलिए जानते हैं विस्तार से — आखिर यह तकनीक क्या है, कैसे काम करती है, और क्यों दिल्ली में यह प्रयोग सफल नहीं हो पाया।

क्लाउड सीडिंग क्या होती है? (What is Cloud Seeding?)

क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसके जरिए बादलों में कृत्रिम रूप से बारिश करवाने की कोशिश की जाती है।
इसमें विमानों या रॉकेट्स के माध्यम से बादलों में सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या ड्राई आइस (Dry Ice) जैसे रासायनिक तत्व छोड़े जाते हैं। ये तत्व बादलों में मौजूद जलवाष्प के साथ मिलकर कृत्रिम वर्षा के कण बनाते हैं, जिससे बारिश होती है।

यह तकनीक पहली बार 1940 के दशक में अमेरिका में इस्तेमाल की गई थी और आज चीन, इज़राइल, दुबई, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इसे नियमित रूप से अपनाते हैं।

दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की जरूरत क्यों पड़ी?

दिल्ली में सर्दियों के मौसम में प्रदूषण स्तर खतरनाक सीमा पार कर जाता है। धूल, धुआं, वाहनों का उत्सर्जन और पराली जलाने का असर मिलकर हवा को जहरीला बना देते हैं।
ऐसे में क्लाउड सीडिंग को एक उम्मीद की तरह देखा गया — ताकि कृत्रिम बारिश से हवा में मौजूद प्रदूषक कण नीचे गिर जाएं और हवा साफ हो सके।

IIT कानपुर की टीम ने दिल्ली सरकार के सहयोग से यह प्रयोग किया, लेकिन परिणाम उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे।

क्यों नहीं हुई बारिश? IIT कानपुर निदेशक का स्पष्टीकरण

IIT कानपुर के निदेशक ने स्पष्ट किया कि “मौसम की परिस्थितियां क्लाउड सीडिंग के अनुकूल नहीं थीं।”
उन्होंने कहा —

“क्लाउड सीडिंग तभी सफल होती है जब आसमान में पर्याप्त बादल और नमी मौजूद हो। उस समय दिल्ली का मौसम शुष्क था और बादलों की घनता बहुत कम थी। इसलिए हमारे द्वारा छोड़े गए कण पर्याप्त जलकण नहीं बना पाए।”

यानी साफ शब्दों में कहें तो मौसम ने साथ नहीं दिया

तकनीकी कारणों ने भी डाला असर

सिर्फ मौसम ही नहीं, कुछ तकनीकी और प्रशासनिक कारण भी असफलता की वजह बने।
IIT कानपुर की रिपोर्ट के अनुसार:

  1. बादलों की ऊंचाई और घनता (Cloud Density) पर्याप्त नहीं थी।
  2. हवा की दिशा लगातार बदल रही थी, जिससे विमान सही स्थान पर सीडिंग नहीं कर सका।
  3. एयर ट्रैफिक कंट्रोल से अनुमति मिलने में देरी हुई।
  4. वायु गुणवत्ता (AQI) पहले से इतनी खराब थी कि तत्काल प्रभाव देखना मुश्किल था।
  5. नमी का स्तर (Humidity) 40% से भी नीचे था, जबकि सफल सीडिंग के लिए 60% या उससे अधिक की जरूरत होती है।

क्लाउड सीडिंग की वैज्ञानिक प्रक्रिया – स्टेप बाय स्टेप

कई लोग सोचते हैं कि क्लाउड सीडिंग बस रसायन छोड़ने से काम कर जाती है, लेकिन यह एक जटिल वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
यहां जानिए इसके स्टेप्स:

  1. मौसम विश्लेषण: पहले मौसम विभाग बादलों की दिशा, गति और घनता का विश्लेषण करता है।
  2. विमान की तैयारी: विमान में विशेष उपकरण लगाए जाते हैं जो सिल्वर आयोडाइड या नमक के कण हवा में छोड़ते हैं।
  3. बादलों में प्रवेश: विमान उचित ऊंचाई पर जाकर बादलों के बीच रसायन फैलाता है।
  4. संघनन प्रक्रिया: रसायन जलवाष्प से मिलकर जलकण बनाते हैं।
  5. वर्षा का निर्माण: जब ये कण भारी हो जाते हैं, तो वर्षा के रूप में नीचे गिरते हैं।

अगर इनमें से कोई भी कदम गड़बड़ा जाए — जैसे कि पर्याप्त बादल न हों — तो पूरा प्रयोग बेअसर हो जाता है।

क्या सिर्फ दिल्ली में ही असफल हुआ ट्रायल?

नहीं, ऐसा नहीं है। भारत के कई हिस्सों में पहले भी क्लाउड सीडिंग ट्रायल्स किए गए हैं।
उदाहरण के लिए:

  • महाराष्ट्र में 2015 और 2018 में ट्रायल हुआ था, लेकिन बारिश सीमित रही।
  • कर्नाटक में भी बेंगलुरु और हुबली के पास प्रयोग किया गया, वहां आंशिक सफलता मिली।
  • हिमाचल प्रदेश में ऊंचाई वाले इलाकों में यह तकनीक काम कर गई थी, क्योंकि वहां नमी अधिक थी।

इसलिए यह कहना गलत होगा कि तकनीक फेल है। असफलता सिर्फ मौसम और समय की वजह से आई।

क्लाउड सीडिंग सफल होने के लिए जरूरी शर्तें

IIT कानपुर के विशेषज्ञों के अनुसार, क्लाउड सीडिंग तभी कारगर होती है जब:

  1. आसमान में क्यूम्यलस टाइप बादल (Cumulus Clouds) हों।
  2. तापमान 0 से 10 डिग्री सेल्सियस के बीच हो।
  3. हवा की दिशा स्थिर रहे।
  4. नमी 60% से अधिक हो।
  5. प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक न हो।

दिल्ली में इनमें से एक भी शर्त पूरी नहीं हुई, इसलिए परिणाम उम्मीद के मुताबिक नहीं मिले।

IIT कानपुर की भविष्य की योजना

IT कानपुर ने कहा है कि यह ट्रायल असफल नहीं बल्कि सीखने का अवसर था।
उनका कहना है कि अगली बार वे मौसम के अनुसार बेहतर समय और क्षेत्र का चयन करेंगे।
निदेशक के अनुसार:

“हमने सीखा कि मौसम का सही चुनाव इस प्रक्रिया की कुंजी है। अगले प्रयास में हम सटीक डेटा विश्लेषण के साथ इसे दोहराएंगे।”

इस बार IIT कानपुर ने भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) के साथ मिलकर नई रणनीति बनाने की योजना बनाई है।

दुनिया में कहां सफल हुई क्लाउड सीडिंग?

कई देशों ने क्लाउड सीडिंग से अच्छे परिणाम पाए हैं:

  • चीन: बीजिंग ओलंपिक (2008) से पहले बारिश रोकने और बाद में करवाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया गया।
  • यूएई (दुबई): हर साल गर्मी में क्लाउड सीडिंग कर बारिश बढ़ाई जाती है।
  • इज़राइल: रेगिस्तानी इलाकों में खेती के लिए कृत्रिम वर्षा सफल रही।
  • ऑस्ट्रेलिया: जल संकट से निपटने के लिए कई क्षेत्रों में इसे लागू किया गया।

इन उदाहरणों से साफ है कि यह तकनीक कारगर है — बस सही मौसम और सटीक योजना की जरूरत है।

क्या क्लाउड सीडिंग सुरक्षित है?

कई लोग यह सवाल पूछते हैं कि क्या सिल्वर आयोडाइड या अन्य रसायन से पर्यावरण को नुकसान पहुंच सकता है?
IIT कानपुर के वैज्ञानिकों का कहना है —

“हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रसायन बहुत सीमित मात्रा में होते हैं, जो पर्यावरण या मनुष्यों के लिए हानिकारक नहीं हैं।”

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने भी इस तकनीक को सेफ और नियंत्रित प्रयोगों के लिए उपयुक्त बताया है।

दिल्ली की हवा: समस्या और समाधान

दिल्ली की हवा आज दुनिया की सबसे प्रदूषित हवाओं में से एक है।
क्लाउड सीडिंग सिर्फ एक अस्थायी राहत दे सकती है।
दीर्घकालिक समाधान के लिए जरूरी है:

  • वाहन उत्सर्जन को नियंत्रित करना
  • ग्रीन एनर्जी और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना
  • औद्योगिक प्रदूषण पर सख्त नियंत्रण
  • पौधारोपण और हरित क्षेत्र का विस्तार

क्लाउड सीडिंग तभी काम करेगी जब ये कदम भी साथ चलेंगे।

लोगों की उम्मीदें और सरकार की चुनौती

दिल्लीवासियों को उम्मीद थी कि इस बार क्लाउड सीडिंग से कुछ राहत मिलेगी।
हालांकि प्रयोग काम नहीं कर पाया, लेकिन इसने यह साबित किया कि सरकार और वैज्ञानिक मिलकर नई राहें खोज रहे हैं।
अब जनता की नजर अगली कोशिश पर है, जो संभवतः आने वाले महीनों में की जाएगी।

निष्कर्ष

क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) एक उन्नत वैज्ञानिक तकनीक है जो कृत्रिम वर्षा के जरिए हवा को साफ करने और जल की कमी दूर करने में मदद कर सकती है।
लेकिन इसकी सफलता पूरी तरह मौसम, नमी और तकनीकी सटीकता पर निर्भर करती है।

दिल्ली में यह ट्रायल भले ही असफल रहा हो, लेकिन IIT कानपुर के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगली बार यह प्रयोग और मजबूत तैयारी के साथ दोहराया जाएगा।

अगर यह भविष्य में सफल होता है, तो यह न केवल दिल्ली बल्कि पूरे देश के लिए प्रदूषण से राहत की एक नई उम्मीद बन सकता है।